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गाँव में जलने लगे हैं चूल्हे,
धुओं की धुंधलाती शाम,
बैलों के गले की मालाओंकी
बज रही रूनझुन- रूनझुन घंटी
माथे पर लकड़ियों,और बोझों से
साड़ियों के आँचल को संभाले
बतियाती ,हँसती ,गाती
औरतों की झुंडों से
लग रही इठलाती शाम
दरवाजे पर बैठे बच्चे
लालटेन की रौशनी में
लिखते- पढ़ते और खेलते
बच्चों की निर्मल सी हँसी में
लगती खिलखिलाती शाम
जुगनूँ भी अब लगे चमकने
देखो ढल गई है शाम
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