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सच, महलों मे रहनेवाले कुत्ते कितने भाग्यशाली होते हैं. अवश्य इनके पूर्व जन्मों का ही फल है कि इन्हें इतना प्यार नसीब है कि जितना किसी गरीब के बच्चों को भी नहीं, जबकि वे मनु की सन्तान हैं. सुबह -सुबह मालिक,मालकिन या अपने लिए खास नियुक्त नौकर के साथ सैर पर जाना. सैर से आकर दूध बिस्कुट का नाश्ता. फिर इम्पोर्टेड शैम्पू से मल-मलकर नहाना. मालिक और बच्चों के साथ खेलना. लंच मे मुर्गा -मीट भात आदि डटकर खाना .सोफे पर बैठकर आराम करना थोड़ा बहुत अजनबियों पर भौंककर डरा देना, बस .शाम में गाड़ी में बैठकर घूमना और मालिक की शान बढ़ाना. खाने के लिए स्पेशल महँगा खाना जो खासकर कुत्तों के लिये निर्मित आता है, खाकर रखवाली के लिए थोड़ा बहुत भौंक लेना क्या मस्ती भरी दिनचर्या होतीहै इनकी ? मालकिन की किट्टी पाटीं इनकी चर्चा के बिना अधूरी है. इनकी थोड़ी भी तबीयत खराब हो तो घर का हर सदस्य परेशान , इनके लिए ट्रेनर नियुक्त किए जाते हैं, जो बच्चों की तरह खेलना सिखाते हैं. और वहीँ गली के कुत्ते जिन्हें जो चाहे लातों, डंडों से पीट दे.
आजकल तो कुत्ते पालने की परंपरा हो गई है . महँगे-महँगे विदेशी कुत्ते पालना स्टेटस सिम्बोल बन गया है . इनको पालने मे आनेवाले खर्चे में गरीब के चार बच्चे पल जायें, मगर इतना सोचता कौन है ?आखिर शौक के आगे ये बातें बोरिंग करने वाली बातें हैं.
सचमुच इन कुत्तों का भाग्य अच्छा होता है………
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