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बदनसीबी है , क्या करें?

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कहीं न कहीं होंगे ही
जन्मदाता हमारे?
रचना हूँ मैं भी उस विधाता की
नाम ,गाम, पहचान भले ही न हो
जन्म तो लिया है इसी धरती पर
जन्म लिया तो
माँ भी होगी, कोई न कोई पिता भी होगा
जन्मस्थान पता नहीं है
पर जिसने सहकर प्रसव की पीड़ा
छोड़ दिया क्यों इस
अनजानी सी दुनिया में
क्या गलती थी मेरी?
कहो न,
दूध के बदले आंसूं ही पिए हम
लोगों की कृपा हुई
बस किसी तरह जी ही गए हम
बचपन क्या होता हमें पता क्या?
लोगों की लातें, कड़वी बातें
भूखा पेट और लंबी रातें
सहा है हमने दिन प्रतिदिन
अब तो आंसूं सूख गए हैं
बस थोरे पैसों की खातिर
क्या क्या नहीं कर जाते हम?
पूछते हैं उस ईश्वर से
क्यों भेजा हमें इस जहाँ में
क्या गलती थी हमारी?
नाथ होते हमारे भी यदि
क्यों कहलाते अनाथ हम?
अनाथ, तिरस्कृत, चोर , नालायक…..
जाने क्या-क्या नाम हैं हमारे?
लेकिन सबसे अच्छी उपमा
लोगों ने दिया है जो हमें
अनाथ …………….

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