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एक आम आदमी क्या चाहता है…?सीधा सा प्रश्न और इसका सीधा सादा जवाब… रोटी. कपड़ा, और मकान…बस इतनी सी ख्वाहिश होती है एक आम आदमी की…उसे देश की चिंता पास पड़ोस की चिंता से ज्यादा कल अपने परिवार के लिए रोटी की चिंता होती है। उसकी सुबह होती है काम से और पूरा दिन बीतता है काम में..उसे दंगे फसाद से कोई मतलब नहीं होता, वह मंदिर, मस्जिद की लडाई से भी दूर रहता है देश के आर्थिक हालात और महंगाई से जरूर मतलब रखता है, महंगी होती सब्जियां उसके चिंता का विषय अवश्य होती हैं, अपने बच्चों के स्कूल की बढती फीस से वह जरूर परेशान होता है, शेयर बाज़ार के बढ़ते घटते भाव से या सोने चाँदी के भाव से उसे कोई मतलब नहीं होता… अपने फायदे के लिए किये जाने वाले दंगे से अनजान हिन्दू मुस्लिम की जतिवादिता से अनजान यह आम आदमी जीना चाहता है क्या हम भी इस आम आदमी की तरह नहीं सोच सकते, कबतक लड़ते रहेंगे हम? राजनितिक पार्टियों के बलि का बकरा कबतक बनते रहेंगे हम? आज हमें जाति, संप्रदाय,इन सबसे ऊपर उठकर एक आम आदमी बनकर सोचना है… क्योंकि एक आम हिंसा… दंगा नहीं चाहता… वह हमेशा अमन चैन चाहता है।
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