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हिंदी… राष्ट्रभाषा नहीं मातृभाषा

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हिंदी और हमारी नयी पीढ़ी… जो हिंदी में बात करने में शर्म महसूस करती है…जिसे अपनी मातृभाषा से प्यार नहीं है… कारण कहीं न कहीं हमारी मानसिकता है जो अंग्रेजी को प्रतिष्ठा की सम्मान की भाषा समझने लगे हैं.. बच्चा जब अपनी तोतली जबान में अंग्रेजी पोएम का पाठ करता है तो ज्यादा खुश होते हैं ..एक से सौ तक की संख्या आजकल ज्यादातर बच्चों को याद नहीं.. छियासी का मतलब नहीं मालूम …एटी सिक्स जानते हैं..अब पहाडा नहीं टेबुल पढाया जाता है.. टाक इन इंग्लिश.. वाक इन इंग्लिश.. ईट इन इंग्लिश ..और स्लीप इन इंग्लिश.. आज प्रेमचंद साहित्य बच्चों को नहीं भाती मगर जे के रव्लिंग का हैरी पोट्टर लोकप्रिय है…दूसरी भाषाओँ को जानना साहित्य पढना गलत नहीं है.. मगर अपनी मातृभाषा का ज्ञान आवश्यक है.. उससे प्यार करना आवश्यक है.. सम्मान देना आवश्यक है… मातृभाषा में बात करने में शर्म कैसी?हीहिंदी दिवस मना लेना ही बड़ी बात नहीं है.. हर साल आयोजन होता है…बड़ी बड़ी बातें होती हैं हमें नीव पर ध्यान देना होगा.. हिंदी को सम्मान देना होगा.. हिंदी से प्यार करना होगा… नयी पीढ़ी को अपनी भाषा और साहित्य का महत्व बताना होगा तभी हिंदी राष्ट्रभाषाके साथ मातृभाषा बन सकेगी

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