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हो गए हैं अब आधुनिक हम
जी रहे हैं मशीनों की दुनिया में
जीवन की इस आपा धापी में
बनकर रह गए मशीन से हम
भूल गए हैं एक दिल भी है
जो, धड़का करता है हममें
धरकन को भूलकर ,हमने खुद को
इंसान समझना छोड़ दिया
भूख जहाँ ,खाना नहीं
खाना है जहाँ वहां भूख नहीं
भूख है बस दौलत की
जो पेट कभी भर सकता नहीं
जिए जा रहे है भागमभाग में सब
रूकने का अब वक़्त कहां
बन बैठे है भगवान भी हम
खुद को, बस
इंसान समझना छोड़ दिया
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