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हम सब अपने आप में इतने व्यस्त हो चुके हैं की खुद के आवरण से बाहर की दुनिया देख ही नहीं पा रहे, अपने आप में अपने आप से परेशान ..यह कैसी जिंदगी जी रहे हैं हम…कभी आपने सोचा है …भौतिक सुखों के पीछे भागते भागते हम इंसान कम मशीन ज्यादा हो गए हैं …१ को १० बनाने १० को १०० बनाने १०० को १००० बनाने की जुगत में हम खुद के आगे सोच ही नहीं पा रहे ,हमारी जिंदगी १००० तक पहुँचते पहुँचते ख़त्म हो जाती है….बनावटी हंसी….चेहरे पर मुखौटे लगाये हम सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं…हमने अपनी मानसिक शांति , सुख, ख़ुशी सब की बलि चढ़ा दी है….हम समाज से, अपनों से दूर होते जा रहे हैं क्योंकि स्वार्थ से परे अब हम कुछ सोच ही नहीं पाते ….मानसिक तनाव और दुखों से हमने अपने आपको जकड रखा है…..क्योंकि हम मनुष्य नहीं मशीन बन गए हैं….जिसमें न दिल धर्क्ता है न सुख दुःख की अनुभूति होती है….कभी इस स्वार्थ के आवरण को हटाकर अपने आसपास अपने अपनों के लिए भी वक़्त निकालें…..महसूस करें की हमारे पास दिल भी है जो धरकता है….इच्छाओं का दमन कर थोड़ी ख़ुशी को खुद से मिलने दें ..क्योंकि स्वार्थ से परे भी जीवन है …जो बहोत ही खूबसूरत है…बस देखने का नजरिया चाहिए
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